ग़ज़ल """""""""" फ़क़त देखा ख़िज़ाँओं को...... हसीं मंज़र नहीं देखा सनम की आँख में तूने....... उतर कर गर नहीं देखा गिरा जब टूटकर इक ख़्वाब.. फ़सलेअश्क़ उग आई ज़मीने चश्म को मैंने........... कभी बंज़र नहीं देखा सनम को मेरे देखा......... तो कहा था ये मुझे रब ने कसम से,आजतक ऐसा कोई....... पैकर नहीं देखा न जाने क्यों हसीनाएँ........ सजा करतीं हैं गहनों से हो बढ़कर सादगी से वो......... मैंने जेवर नहीं देखा खिला था जो फ़क़त मुस्कान से..... तेरी मिरे दिल में गुलाबो गुल कोई उससे........... मैंने सुंदर नहीं देखा हुआ जो आपका मैं इक दफ़ा.. बस ख़्वाब में हमदम किसी भी और का मैंने........ कभी होकर नहीं देखा वो तो भाभी के पाँवों की.फ़क़त बिछिया को पहचाने लखन की आँख ने इससे....... कभी ऊपर नहीं देखा हमारी उम्र सारी.............. यार पे मरने में गुज़री है नफ़स जब तक चली.. हमने कभी जीकर नहीं देखा ज़मीं को झाड़ सोते हैं.......... नहीं करते गिला कोई हज़ारों हैं जिन्होंने आजतक........ बिस्तर नहीं देखा मोहब्बत खेल है...... छुप्पन-छुपाई का वो कहता है यक़ीनन खेलकर उसने....... कभी चौसर नहीं देखा इज़ाजत हो अगर,.... .तुमको ज़रा-सा छू के मैं देखूँ यकीं मानो कभी मैंने........... सँगेमरमर नहीं देखा #संगमरमर #पैकर #बिस्तर #जेवर #सादगी #सनम #ghumnamgautam