"सर्द" कहानी "कैप्शन" में पढें ।। वो चार फूट की चादर उस छः फूट के शरीर पर कफन बनने की पूरी कोशिश में थी,मौत से लडने की जंग जोरों पर थी । कभी सर आता मैदान में,तो कभी वो फटे पैर । लेकिन सब सर्द हवाओं से लड़ झगड़कर फिर छुप जाते । युंह नहीं था कि यह रोज़ की बात थी,लेकिन आज मौसम भी हत्यारा हो गया था । कंबल लेना एक सपना ही था,400₹ की कंबल में सिर्फ 400₹ ही कम थे , आखिर भीख भी सिर्फ पेट भरने की इजाज़त देती थी,सपने पालने की नहीं । रमेश जानता था की यह लडाई लंबी चलेगी,उसे पूरी रात इन सर्द हवाओं से छुपना था । नींद तो पहले ही डर कर लापता थी,