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आज भी पोंछता हूं उसी अगोंछे से मूंह, पोटली इल्म क

आज भी पोंछता हूं 
उसी अगोंछे से मूंह,
पोटली इल्म की 
खुद ही जला दी मैंने,
फिर भी कैसे कहूं 
सारी उम्र गवां दी मैंने।

हां नाकामियों का
बहुत हुनरमंद हूं मैं,
राह कामयाबियों की
खुद ही फ़ना की है मैंने,
फिर भी कैसे कहूं
सारी उम्र गवां दी मैंने। सारी उम्र गवां दी मैंने
________________

आज भी पोंछता हूं 
उसी अगोंछे से मूंह,
पोटली इल्म की 
खुद ही जला दी मैंने,
फिर भी कैसे कहूं
आज भी पोंछता हूं 
उसी अगोंछे से मूंह,
पोटली इल्म की 
खुद ही जला दी मैंने,
फिर भी कैसे कहूं 
सारी उम्र गवां दी मैंने।

हां नाकामियों का
बहुत हुनरमंद हूं मैं,
राह कामयाबियों की
खुद ही फ़ना की है मैंने,
फिर भी कैसे कहूं
सारी उम्र गवां दी मैंने। सारी उम्र गवां दी मैंने
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आज भी पोंछता हूं 
उसी अगोंछे से मूंह,
पोटली इल्म की 
खुद ही जला दी मैंने,
फिर भी कैसे कहूं