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मन की बंजर ज़मीन पर.. प्रेम का पौधा खिला था.. एक दि

मन की बंजर ज़मीन पर..
प्रेम का पौधा खिला था..
एक दिन तुमसे मिली थीं..
आधे-आधे हृदय के टुकड़े समेटे..
हौले-हौले से कोई रिश्ता जुड़ा था..
मैं जो कभी कह नही पायी थी तुमसे..
तुमने आंखों से वही वादा किया था..
और उसी को ज़िन्दगी कहने लगी फिर..
एक पल जो दोनों ने संग में जिया था.. यू ही
मन की बंजर ज़मीन पर..
प्रेम का पौधा खिला था..
एक दिन तुमसे मिली थीं..
आधे-आधे हृदय के टुकड़े समेटे..
हौले-हौले से कोई रिश्ता जुड़ा था..
मैं जो कभी कह नही पायी थी तुमसे..
तुमने आंखों से वही वादा किया था..
और उसी को ज़िन्दगी कहने लगी फिर..
एक पल जो दोनों ने संग में जिया था.. यू ही