आए हैं मीर मुँह को बनाए जफ़ा से आज शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज जीने में इख्तियार नहीं वरना हमनशीं हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज! *मीर तक़ी मीर* मीर की शायरी .02