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#OpenPoetry #अंततोगत्वा... दबंगों की अनैतिकता अलग

#OpenPoetry #अंततोगत्वा...
दबंगों की अनैतिकता अलग है,
उन्हें अन्याय की सुविधा, अलग है।
डराते ही नहीं अपराध उनको,
महल का गुप्त दरवाजा अलग है।
जिसे तुम व्यक्त कर पाए न अब तक,
वो दोनों ओर की दुविधा अलग है।
पतंगें कब लगीं आजाद पंछी,
पतंगों की तरह उड़ना अलग है।
जिसे महसूस करता हूँ मैं अक्सर,
तुम्हारी देह की दुनिया अलग है।
है स्वाभाविक किसी दुश्मन की चिन्ता,
निजी परछाईं से डरना अलग है।
वो चाहे छन्द हो या छन्द-हीना,
हमारे दौर की कविता अलग है।
★अज्ञात.
#OpenPoetry #अंततोगत्वा...
दबंगों की अनैतिकता अलग है,
उन्हें अन्याय की सुविधा, अलग है।
डराते ही नहीं अपराध उनको,
महल का गुप्त दरवाजा अलग है।
जिसे तुम व्यक्त कर पाए न अब तक,
वो दोनों ओर की दुविधा अलग है।
पतंगें कब लगीं आजाद पंछी,
पतंगों की तरह उड़ना अलग है।
जिसे महसूस करता हूँ मैं अक्सर,
तुम्हारी देह की दुनिया अलग है।
है स्वाभाविक किसी दुश्मन की चिन्ता,
निजी परछाईं से डरना अलग है।
वो चाहे छन्द हो या छन्द-हीना,
हमारे दौर की कविता अलग है।
★अज्ञात.
ashokkumar2333

Ashok Kumar

New Creator