तपती दुपहरी में, सूर्य की किरणें जब , सब कुछ खाक कर देना चाहती हो.. एक अधेड़ उम्र का "आदम जात" विज्ञान के चमत्कार से उतपन्न, सरिये और सीमेंट से लदी.. तिपहिया वाहन अर्थात "ठेलिया" को चलाता हुआ , जिंदगी के पहियों से, 'सामंजस्य' बैठाने के फेर में .. प्रयत्न करता दिखा... कभी मांथे से, पसीना पोछता तो, प्रतीत होता.. मानो,एक बारगी में, अपना सब पीड़ा और दुःख.. उस कालिख लगे कुरते से पोछ देना चाहता है.. पैडल पर पाँवो का दबाव, कुछ यूं था... मानो, एक बारगी में सारी 'गरीबी' कुचल देना चाहता है.. मैं पास गया ,निरीक्षण किया, उसका, उसके वाहन का.. और "स्तब्ध" रह गया.. यह देखकर.. वो सरिया और सीमेंट नही बल्कि, निकम्मे समाज की मरी संवेदनाये... नेताओ के योजनाओं के पुलिंदे.. गांव की पगडंडियों पर मरे.. अपने पूर्वजों की लाशें.. राजशाही में खोए रईसों.. भगत ,गांधी और अम्बेडकर की, मर चुकी उम्मीदों का.. "लाश" ढो रहा था । जो दूर से .. "सरिया और सीमेंट" दिख रहा था.. @भाष्कर आज जब देखा..