वो प्रेम प्रणेता कान्हा भी जब धर्म का करता मंथन है तब बांसुरी का रूप बदलकर होता चक्र सुदर्शन है वो गोकुल की सुरताल बना वो लाल नन्द की ढाल बना वसुदेव का पुत्र है वो संग दो मैय्या का लाल बना भगवान की किस्मत देखो कि वो माँ भी कारावास में थी कि कृष्ण बचाने आएगा जीवन भर इस अरदास में थी जब कंस कपट से देवकी की काया करती क्रंदन है तब बांसुरी का रूप बदलकर होता चक्र सुदर्शन है भगवतगीता का सार रहा वो एक गगन विस्तार रहा कभी क्रोध रणचंडी सा कभी मोहक सा श्रृंगार रहा वो दुर्योधन को समझाने एक रूप अति विक्राल बना वो दुर्योधन का काल बना वो महाभारत की चाल बना जब कृष्ण को नकार कर दुर्योधन करता गर्जन है तब बांसुरी का रूप बदलकर होता चक्र सुदर्शन है मटकी से मथुरा तक जिसका महाकाव्य में वर्णन है धर्म कर्म तप त्याग प्रेम सम्पूर्ण समाहित संगम है वो गर्व गोवर्धन चूर करे और प्रेम का भी वो बन्धन है वो नाग नाथ कहलाता है वो एक सुगंधित चंदन है जब कर्म तराजू पर करता हर न्याय देवकी नन्दन है तब बांसुरी का रूप बदलकर होता चक्र सुदर्शन है तब बांसुरी का रूप बदलकर होता चक्र सुदर्शन है तब बांसुरी का रूप बदलकर होता चक्र सुदर्शन है #RDV19