तुम विजेता हो प्रेयसी, तुम लड़ती हो, न कवच न कुंडल न ही खड्ग है, तुम लड़ती हो मगर फिर भी, विजेता तुम धन्य हो.... मैं पुरुष... अहं पुरुषार्थ का, प्रतिबिम्ब गगन का, बना हुआ हुँ धुआँ धुआँ