कटु-वाणी।। किस कर दीप बुझाऊँ बोलो, जो सुबह रही रौशन ही नहीं। एक फूंक मार दूँ भी मैं कैसे, जो दुबक रहा यौवन ही कहीं। अज़ान श्लोक वाणी है महज़,