मुंतशिर हर साँस तन्हाई के आलम में आज भी इंतज़ार करती है धड़कनों का न मालूम मुझे ही अपने दर्द की वजह न इलाज मिल रहा आँखों के अश्क़ का नाम भी पूछती हूँ पहचान पूछती हूँ मैं ढूँढती हूँ कतरा-कतरा अपने वजूद का बे-असर हर दुआ हर सजदा बेमानी हैं न मिला मुझे पैग़ाम अब तक मेरे खुदा का नहीं जानती अंज़ाम मैं इस ज़िंदगी का मिट जाए फासला अब हर ख़ुशी का प्रविष्टि-१ . मुंतशिर हर साँस तन्हाई के आलम में आज भी इंतज़ार करती है धड़कनों का न मालूम मुझे ही अपने दर्द की वजह न इलाज मिल रहा आँखों के अश्क़ का