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सही नहीं हर बात का दोषी औरत को ही ठहराना, घर टूटे

सही नहीं हर बात का दोषी औरत को ही  ठहराना,
घर टूटे तो उसके टुकड़ों का, इल्ज़ामऔरत पर ही लगाना,
मां की लाड़ली पिता की जिंदगी बेटी से बहु बन जाती है
अनजान रिश्तों की चक्की में वो यू ही बस पीस जाती है,
सही नहीं हर बात का दोषी औरत को ही ठहराना।
सही नहीं हर बात का दोषी  औरत को ही  ठहराना,
घर की एकता में बल ही नहीं हो तो उसके,
 टूटने का इल्ज़ाम क्यूं इक औरत पर लगाना,
नाना की लाड़ली नानी की दुनिया
  अपना घर त्याग के दूसरे घर आती है,
इज्जत की हकदार हैं वो तो,
 फिर भी इल्ज़ाम पाती है,
सही नहीं हर बात का दोषी  औरत को ही ठहराना।
सही नहीं हर बात का दोषी औरत को ही ठहराना,
घर की दीवारों की नींव खोखली हो,
तो उसका इल्ज़ाम क्यूं औरत पर लगाना,
दादा की लाड़ली दादी की जान ,
बेटी से पत्नी बन जाती है,
दो घरों के वैचारिक मतभेद में वो बेचारी पीस जाती है,
पति के लिए वो जिंदा जल जाए तब भी वो दोषी ठहराती है,
सही नही हर बात का दोषी  औरत को ही ठहराना।

©Meenakshi Sharma हर बात का दोषी औरत को ठहराना
#dusk
सही नहीं हर बात का दोषी औरत को ही  ठहराना,
घर टूटे तो उसके टुकड़ों का, इल्ज़ामऔरत पर ही लगाना,
मां की लाड़ली पिता की जिंदगी बेटी से बहु बन जाती है
अनजान रिश्तों की चक्की में वो यू ही बस पीस जाती है,
सही नहीं हर बात का दोषी औरत को ही ठहराना।
सही नहीं हर बात का दोषी  औरत को ही  ठहराना,
घर की एकता में बल ही नहीं हो तो उसके,
 टूटने का इल्ज़ाम क्यूं इक औरत पर लगाना,
नाना की लाड़ली नानी की दुनिया
  अपना घर त्याग के दूसरे घर आती है,
इज्जत की हकदार हैं वो तो,
 फिर भी इल्ज़ाम पाती है,
सही नहीं हर बात का दोषी  औरत को ही ठहराना।
सही नहीं हर बात का दोषी औरत को ही ठहराना,
घर की दीवारों की नींव खोखली हो,
तो उसका इल्ज़ाम क्यूं औरत पर लगाना,
दादा की लाड़ली दादी की जान ,
बेटी से पत्नी बन जाती है,
दो घरों के वैचारिक मतभेद में वो बेचारी पीस जाती है,
पति के लिए वो जिंदा जल जाए तब भी वो दोषी ठहराती है,
सही नही हर बात का दोषी  औरत को ही ठहराना।

©Meenakshi Sharma हर बात का दोषी औरत को ठहराना
#dusk