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मैं जब अपने गहरे अकेलेपन में होता हूँ तो जाने क्यो

मैं जब अपने गहरे अकेलेपन में होता हूँ तो जाने क्यों तुम्हारा नाम बुदबुदाने लगता हूँ। उस नाम की प्रतिध्वनि जब मेरे कानों में पड़ती है तो मैं मुस्कुरा देता हूँ। प्रेम अपने खत्म होने के बाद भी कितना दे रहा होता है! पर मैंने देखा है कि मैं कितने ही वीराने में होऊँ, मैं कभी तुम्हें आवाज़ नहीं लगाता हूँ। क्योंकि तुम्हें पुकारने में मुझे तुम्हारा चले जाना दिखता है। तुम्हारे चले

जाने को बार-बार देखने की ताक़त अब मेरे शरीर में नहीं रही है। सो मैं बस तुम्हारा नाम बुदबुदा देता हूँ।

©विपिन सिंह फौजी
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