ग़ज़ल - तुम हो तो मुख़्तसर ज़िन्दगी ये मेरी इसे सदियाँ बना दूँ तुम्हारे लबों की प्यास पल भर में बुझा दूँ हाँ ये रिवायतें रोकती हैं मुझे इन रस्मों को तोड़ तुम को अपना बना लूँ तेरी एक मुस्कान को मैं अपनी दास्ताँ बना लूँ 【मुख़्तसर = संक्षिप्त, छोटा】 ग़ज़ल - तुम हो तो मुख़्तसर ज़िन्दगी ये मेरी इसे सदियाँ बना दूँ तुम्हारे लबों की प्यास पल भर में बुझा दूँ हाँ ये रिवायतें रोकती हैं मुझे इन रस्मों को तोड़