की वो आग नही रही, ना शोलों से दहकता हूँ, रंग भी सबके जैसा है, सब सा ही तो महकता हूँ, एक अरसे से हूँ खामोश कश्ती को थामे भँवर में, तूफान से भी ज्यादा साहिल से सँवरता हूँ, की वो आग नही रही, #Zakir_Khan