जब तुम गाँव की मुंडेर पर बैठोगी, वह समां कितना सुहावना होगा ! बैठकर कुछ तो सोचोगी, दिल में कुछ अरमान तो होगा ! जब तुम गाँव की मुंडेर........ ज़माने की तमाम खुश्क मुसीबतों से, कुछ देर ही सही दूर रहने का बहाना तो होगा ! जब तुम गाँव की मुंडेर........ मुफलिसी, और शहर की आपाधापियों से दूर, सुदूर, तन्हा आकाश तले, सर्द हवाओं का आसरा तो होगा! जब तुम गाँव की मुंडेर........ जब कुछ सोचने लगो तुम, लम्बी सांसों में कुछ शब्दों का बयां तो होगा ! जब तुम गाँव की मुंडेर........ शब्द जब तुम बुनने लगो, मर्म जब उनका समझने लगो ! तो बस उकेर लेना उन्हें मन के कैनवास पर ! लिखना उन्हें दिल की कलम से, यकीन मानों दिल की गहराइयों में एक प्यारा सा अहसास तो होगा ! जब तुम गाँव की मुंडेर........ अहसास क्या है, मन की कोमल अनुभूति है, एक मधुर गुमनाम फूल की महक है ! अनदेखा सपना है, मन के तार जँहा प्रस्फुटित होते हैं ! जब तुम गाँव की मुंडेर........ आंखे बंद कर महसूस करना, दिल की धड़कनों में तरंगे बज रही होंगी, बस लफ्जों में महसूस करना उन्हें, दिल को सुकून मिलेगा ! जब तुम गाँव की मुंडेर........ थककर चूर हुई जिंदगी की दोपहर से, एक ठंडी झोपड़ी सा आराम तो होगा ! रचना - भाष्कर द्विवेदी ©Bhaskar Dwivedi मुंडेर #जब तुम गाँव की मुंडेर पर बैठोगी #कविता #जमाना #दिल #dil #Aahsaas #Aakaash ऑंखें #dophar#झोपड़ी #Mountains