सपने और सोच का ये अजीब सा द्वंद है चीज़े ये जो रूक सी गई है, हवाएं भी अब मंद है। ये पहर है दोपहर का तो फिर क्यूं उठ रही ये लहर है दूर कुछ तो हो रहा क्या मैं नींद में सो रहा। मैंने लोरिया भी गायी है, खुद से खुद को सुलाया है। अब नींद मेरी गहरी थी हो चली, तभी मेरे सपनों ने मुझे जगाया है। ये कोई पहली बार नहीं इसने ये हरकत तो कई बार दोहराया है। फिर मैंने यू सोचा कि ये सपने क्यूं आ जाते है हमे हमारे नींद से यू क्यूं जागाते है। जवाब मैंने ये पाया है ये सपने तो हमारे ही सोच का एक साया है। जो सोचते है हम, वहीं स्वपन तो हमें आता है हमें हमारी नींद से वही तो जगाता है। अब सोच को तो कोई रोक सकता नहीं इन सपनों के बिना मैं सो सकता नहीं। तो इक दिन इन सब सपनों के पिछे जाऊंगा और एक मीठी सी नींद सो जाऊंगा। #Pranav Abhishek ©Pramish Abhishek #सपने #nojoto #meltingdown