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इक रात कुर्सी बैठ गए बाहर थे, जब दिखाई दे रहे, हर

इक रात कुर्सी बैठ गए बाहर थे,
जब दिखाई दे रहे,
हर रास्ते बंद थे।
सोचा थोड़ा बाहर की हवा खाके
मन को सुकून दे आते है।
तब देखेंगे इस मंजिल के साथ हम,
किस ओर जाते है।
सोच सोच कर,
पढ़ गई उस चांद पर नजर।
कब होगई सुबह
उस चांद को देख देख कर।
इन सब बातों से रहे हम बेखबर,
सीख गए हम एक बात उस रात पर।
रात बार चांद रहा सितारों के पास था,
पर सबसे नजदीक उस चांद के साथ उसका 
साया था।

©Ujjwal Kaintura
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