मीलों दूर किसी दूसरे शहर में बैठे तुम कभी दूर प्रतीत नहीं हुए , क्योंकि हमारे हृदय जो एक दूसरे के पास थे ..। और आज जब अपने समक्ष खड़ा देख रही हूं तुम्हें, तो हाथ बढ़ाकर तुम्हें छू लेने की चाह तक बाकी नहीं है मुझमें ..! "मीलों की दूरी से कहीं बड़ी होती है पगों की दूरी .. और पगों की दूरी से कहीं पहले हो जाते हैं हृदय दूर "- तुम्हारी आंखों में जमा बैठा बेगानापन , अंतिम पत्र की तरह , यह पढ़ कर सुना रहा है मुझे..! "यह कैसा छलावा है जिसका भान नहीं पड़ता!" मैं पूछती हूं .. "कोई संकेत , कोई चेतावनी गर मिलती मुझे तो मैं यह अनर्थ होने से रोक लेती शायद .. समय रहते बांध लेती तुम्हारा हृदय कस कर .. अपने पास ... यकीन मानों.. दूर जाते पगों की आहट पहचानती हूं मैं ..! मगर.. दूर होते हृदय कोई आवाज़ भी तो नहीं करते ! " मीनाक्षी ©Meenakshi #srijanaatma