एक सामयिक कविता - लंबे हम हो रहे है काली सूखी राहों पर, खंबे हम बो रहे है, अज्ञ विकास की राहों पर, लंबे हम हो रहे है। विलीन सी धाराओं पर, मैल हम धो रहे है, उदास जलमलाओं पर, लंबे हम हो रहे है। खुरदरे खड़े टीलों पर, शजर हम खो रहे है बनवा कोठे पर्वतों पर, लंबे हम हो रहे है। इन नशीली हवाओं पर, बाज़ सब रो रहे है, गिद्धों से हालातों पर, लंबे हम हो रहे है। डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳 ©Anand Dadhich #Pollution #PoemOnPollution #kaviananddadhich #poetananddadhich #hindipoetry #POLLUTED_DELHI