क्या रेत से थें अरमान मेरे जो रेज़ा-रेज़ा बिखर गए क्या तुम न थी मेरी किस्मत में जो ऐसे मिलकर बिछड़ गए सब ख़ाक हुए ख़्यालात मेरे सब ख़्वाब यूँ चकनाचूर हुए मिलने का यक़ी जब था हमको फिर आख़िर क्योंकर दूर हुए (क़मर अब्बास) #ख़्वाब