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तमाशा देखता है वो लगाकर आग पानी में। हमें अ

तमाशा   देखता   है  वो  लगाकर आग पानी में।
हमें  अफ़सोस   है  शायद  मरेंगें हम जवानी में।।
,
हमारे  जिस्म  का  मलबा पड़ा है कब्र में लेकिन।
हमारी  रूह  अटकी   है अभी तक रात रानी में।।
,
गुज़िश्ता इक महीनें से ग़ज़ल जो कह नहीं पाया।
कहीं वो  नाम  ना  ले ले तेरा मिसरा ए सानी में।।
,
तकल्लुफ़ क्यूँ करे कोई तस्सली दे के हमको अब।
हमें  तो  हारना  ही  था लिखी अपनी कहानी में।।
,
हमारे  हाल  पर  दुनियां  सही तनकीद करती है।
मिला क्या कुछ नहीं हमको हमारी ज़िंदगानी में।।
,
कहीं है वस्ल का क़िस्सा कहीं है हिज्र का मातम।
मगर हर आदमी रहता है इस दुनिया-ए-फ़ानी में।।
,
बहुत  था हौसला सच बोलने का बोलते  थे हम।
कटाकर सर चले  आये  कहीं से हक़-बयानी में।।
#रमेश 
गुज़िश्ता-बीता हुआ।
मिसरा-ए-सानी-शेर की दूसरी पंक्ति।
तकल्लुफ़-औपचारिकता।
तनकीद-आलोचना।
दुनिया-ए-फ़ानी-नश्वर संसार
तमाशा   देखता   है  वो  लगाकर आग पानी में।
हमें  अफ़सोस   है  शायद  मरेंगें हम जवानी में।।
,
हमारे  जिस्म  का  मलबा पड़ा है कब्र में लेकिन।
हमारी  रूह  अटकी   है अभी तक रात रानी में।।
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गुज़िश्ता इक महीनें से ग़ज़ल जो कह नहीं पाया।
कहीं वो  नाम  ना  ले ले तेरा मिसरा ए सानी में।।
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तकल्लुफ़ क्यूँ करे कोई तस्सली दे के हमको अब।
हमें  तो  हारना  ही  था लिखी अपनी कहानी में।।
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हमारे  हाल  पर  दुनियां  सही तनकीद करती है।
मिला क्या कुछ नहीं हमको हमारी ज़िंदगानी में।।
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कहीं है वस्ल का क़िस्सा कहीं है हिज्र का मातम।
मगर हर आदमी रहता है इस दुनिया-ए-फ़ानी में।।
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बहुत  था हौसला सच बोलने का बोलते  थे हम।
कटाकर सर चले  आये  कहीं से हक़-बयानी में।।
#रमेश 
गुज़िश्ता-बीता हुआ।
मिसरा-ए-सानी-शेर की दूसरी पंक्ति।
तकल्लुफ़-औपचारिकता।
तनकीद-आलोचना।
दुनिया-ए-फ़ानी-नश्वर संसार
rameshsingh8886

Ramesh Singh

New Creator