दो अपरिचित नियत चाहती मेल सूखे अकाल होठ चाहती निर भंडार एक माया चढ़ रही उतुंग अंतर्मन की पाषाण कभी पुलकित रोम कल्पना से राजी शरीर उछाल तो कभी किसलय प्रेम दृष्टि को स्पर्श करता नयन साज इतने में दोनों पहुंच कर पास लगे करने प्रेम चकोर पंछी समान शीतल चांदनी का रसपान कर प्रेम नीखरा ज्यों लिखने लगा पूर्ण प्रेम मिलन कविता मै (कामिल कवि कूनु)कुनाल #मेरे_जज्बात008 #प्रेमी_मन #साहित्य_प्रेमी #एक_आवारा_सनक_हूं_मैं #पागल_आशिक love you 😘😘😘😘 #yqdidi #yqbaba