नाम में मज़हब ढूढ़ते हैं लोग फ़िर इंसा में इंसा मिले कैसे.. हाथ में पत्थर लिये फ़िरते हैं लोग फ़िर आईना उनकों दिखे कैसे.. नमक से तर हैं कपङे उनके फ़िर दिल से दिल मिले कैसे.. भरे बाजार बिकने के लिये है हम तैयार वो सच्चे सौदागर मिले कैसे.. एक हम है जो टूटने के लिये हैं तैयार वो अहसासों के पत्थर मिले कैसे.. उनकों इंसा में इंसा दिखे कैसे.. ©Manjul Sarkar #मज़हब #zindagikerang