आद्र नेत्रो से कब रुकती अश्रु निर्झरिणी, भवक्लांतो के विस्तृत तिमरांचल से जिंदगी सनी तेरे करो से मेरे लिए भी कोई ज्योतिवाह बनी या केवल तमश, अकुलाहट भारी रातें मेरे लिए चुनी। ©sanjay kumar kumola #आद्र #जिंदगी #ज्योतिवाह #अकुलाहट