दर भदर भटकती राहो ने मंजिल ली है वो क्या जाने आज़ादी की कीमत जिन्होंने शुरुआत असफलता से की है हौसलो की पहचान ना ज़िन्दगी ने दी है रोज सुबह उड़ते ज़िन्दगी एक नई है बेगैरत ही सही ज़िन्दगी तो ज़ी है उम्मीद उड़ानों की हर राह पर दी है ज़िन्दगी नाकामयाब ही सही आजदी की मांग तो की है झूठी ही सही जान सता ने ली हैं मांग कर अधिकार अपने गुस्ताखियां की है देकर अपने हिस्से की जान मांग शहादत की है। justice for Bhagat Singh ©Writer Geeta Sharma fan of bhagat singh #Shaheedi_diwas