हम इतने बहिर्मुख हो गये है कि भीतर आनन्द का सागर हिलोरे मार रहा है और हम सुख के लिए बाहर कीचड़ कुरेद रहे हैं, कचरा रौंद रहे हैं। वास्तविक आनन्द अपने स्वरूप में है। इसके अलावा कहीं भी आनन्द दिखता हो तो समझ लो कि अभी अपने दुर्भाग्य का अन्त नहीं आया। #Bapuji #बापुजी