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रसधार बने, मेहमान बने, सपनो में दिखे, आकार ढले। आ

रसधार बने, मेहमान बने,
सपनो में दिखे, आकार ढले।

आँखों में रंग, नीला सा दिखे,
मध्यम सी, सूरज में खुले।।

चेहरे की रंगत, फागुन में रंगे,
रंगों की धार , लिपटी सी चले।

मन की चंचलता, सावन में झूले,
सु-सृजित से , कुछ केश खिले।

रसधार बने........मेहमान बने.......

©गणेश चौधरी "बेफिक्र"
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