कितनी शिद्दत से वो, सुर्ख़ नज़रें चुराता है ... इक- इक सांस गिरवी रख , मक़ाम-ए-सुकूँ अपनी चौखट तक लाता है....। छुपा लो पलकों की ओट में चाहे कैद कर लो रूह में ... बड़ा बेसब्र है वो, जाने खातिर ही आता है .....। मुझे पूछना है कि उसकी तपिश का राज़ क्या है ... क्यूं ख़ुद जलकर भी वो ख़ुदा को रौशन कर जाता है ....। फ़कत तब्दीलियों के सिवा यहां कौन ठहर पाता है ... ना जाने क्यूं हर ज़लज़ला इतनी ख़ामोशी से आता है.....। मुझे देखना है ,उसके होठों पर साज़ क्या है ... जो मेरी बुझती मुंडेर रौशन करने , हर रोज़ छजे पर उतर आता है ....।।-Anjali Rai (शेरनी ❤️) मक़ाम-ए-सुकूँ -place of peace सुर्ख - Red ज़लज़ले (زلزلہ)- Earthquake साज़ (ساز)- to build relationship/ musical instrument मुंडेर -a kind of supporting wall छजे- Balcony .......✍️........ कितनी शिद्दत से वो,