देख लो आफ़त का खेल अपना घर भी लगता जेल बस बदला भी कुछ नही घर पहले जैसा ही है वो रौनक लौट नही आई जो अपने घर को घर करती है ©लेखक सरवर अली माजरा घर भी जेल