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तड़पे हैं यादों में तुम्हारी, न एक भी रात को सोये

 तड़पे हैं यादों में तुम्हारी,
न एक भी रात को सोये हैं..!

तुम क्या जानो तुम्हारी ख़ातिर,
हम छुप छुप कर रोये हैं..!

कभी सुनाते सुनाते कविता अपनी,
भरी महफ़िल में खोये हैं..!

होश में आये जब भी फिर,
शर्मिंदा सबके सामने होये हैं..!

फ़सल प्रेम की होगी तैयार,
इस उम्मीद का बीज़ बोये हैं..!

पर बरपा क़हर विरुद्ध हमारे,
जज़्बात भी नष्ट होये हैं..!

सभी के लिए बेपनाह मोहब्बत,
हृदय में शूल हमारे चुभोये हैं..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #thepredator #royehain