ये झूठी मुस्कान लेकर कहां जाऊं। खो गए सारे पहलू ज़िंदगी के, ऐसी धुंधली पहचान लेकर कहां जाऊं।। हम तो खुद को भूल चुके है अब मुझमें ठहरे इस अनजान मेहमान को लेकर कहां जाऊं।। वक्त अब शेष हो चला है, अब अधूरा इमतिहान लेकर कहां जाऊं।। ये झूठी मुस्कान लेकर कहां जाऊं। खो गए सारे पहलू ज़िंदगी के, ऐसी धुंधली पहचान लेकर कहां जाऊं।। हारा हारा फिर रहा मैं, जीत के झूठे अरमान लेकर कहां जाऊं।। ज़मीं का हर टुकड़ा धिक्कारता है, अब खाली आसमान लेकर कहां जाऊं।। ये झूठी मुस्कान लेकर कहां जाऊं। खो गए सारे पहलू ज़िंदगी के, ऐसी धुंधली पहचान लेकर कहां जाऊं।। #Deep_Thought #Undefined_Rainbow #Untold_memories. ©Alok P Gaurav ये झूठी मुस्कान लेकर कहां जाऊं। खो गए सारे पहलू ज़िंदगी के, ऐसी धुंधली पहचान लेकर कहां जाऊं।। हम तो खुद को भूल चुके है अब मुझमें ठहरे इस अनजान मेहमान को लेकर कहां जाऊं।। वक्त अब शेष हो चला है, अब अधूरा इमतिहान लेकर कहां जाऊं।।