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ग़ज़ल हम सरे-बाजार यूं गुफ़्तार कर नही सकते अपने

ग़ज़ल 
हम सरे-बाजार यूं गुफ़्तार कर नही सकते
अपने रिश्ते को आलमशकार कर नही सकते//१
रक्खा है रोज़ा मुद्दत से मेरी  इन चश्म ने
बिन तेरे दीदार के इफ़्तार कर नही सकते//
सिर्फ़ सीने को निशाना ही बनाते हरदम।
पीठ पर हम तो कभी वार नहीं कर सकते।।
सोए हुए को जगा सकते है सभी,हम जागे हुए
 को बेदार हरगिज कर नही सकते//         
किसका करना हैं अदब ख़ूब हमें आता है
जालिम तेरे कदमों में तो दस्तार कर नही सकते//
अपने भाई को हराने के एवज हम,उसके 
दुश्मन को तरफ़दार कर नही सकते//
"शमा"क्या मसले_मसाइल है अपने,हमें है मालूम
अपनी नफ्स को तेरे ज़ल्वों का तलबगार कर नही सकते//
       -

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ग़ज़ल 
हम सरे-बाजार यूं गुफ़्तार कर नही सकते
अपने रिश्ते को आलमशकार कर नही सकते//१
रक्खा है रोज़ा मुद्दत से मेरी  इन चश्म ने
बिन तेरे दीदार के इफ़्तार कर नही सकते//
सिर्फ़ सीने को निशाना ही बनाते हरदम।
पीठ पर हम तो कभी वार नहीं कर सकते।।
सोए हुए को जगा सकते है सभी,हम जागे हुए
 को बेदार हरगिज कर नही सकते//         
किसका करना हैं अदब ख़ूब हमें आता है
जालिम तेरे कदमों में तो दस्तार कर नही सकते//
अपने भाई को हराने के एवज हम,उसके 
दुश्मन को तरफ़दार कर नही सकते//
"शमा"क्या मसले_मसाइल है अपने,हमें है मालूम
अपनी नफ्स को तेरे ज़ल्वों का तलबगार कर नही सकते//
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