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गुजरती रही जिंदगी धीरे धीरे, वो बैठा रहा यमुना तीर

गुजरती रही जिंदगी धीरे धीरे,
वो बैठा रहा यमुना तीरे।
कभी यमुना को निहारे,
तो कभी डूबते हुए को निकले।
कुछ नहीं था उसके पास खाने को थे सिर्फ खीरे,
गुजरती रही जिंदगी धीरे धीरे।
सोचा बहुत समय है जिंदगी में सब कुछ कर लूंगा,
पैसे कमाकर महल बनाके सोने से भर दूंगा।
वो करता कुछ नहीं सिर्फ खाव बुनता था यमुना तीरे,
गुजरती रही जिंदगी धीरे धीरे।
सिर्फ सपने देखकर खुश हो जाए,
काम धंधा कुछ न कर पाए।
यमुना तीरे बांसुरी बजाए,
अपने को श्रीकृष्ण बताए।
अब उम्र निकल गई धीरे धीरे,
कैसे महल बनाए यमुना तीरे।
सोचा जिंदगी में अब क्या ही करूंगा,
हो गई उमर पूरी अब तो मरूंगा।
अब खाने को भी नही रहे खीरे ,
गुजरती रही जिंदगी धीरे धीरे।

©Jeevan Rana
  #गुजरती रही जिंदगी धीरे धीरे,
वो बैठा रहा यमुना तीरे।
कभी यमुना को निहारे,
तो कभी डूबते हुए को निकले।
कुछ नहीं था उसके पास खाने को थे सिर्फ खीरे,
गुजरती रही जिंदगी धीरे धीरे।
सोचा बहुत समय है जिंदगी में सब कुछ कर लूंगा,
पैसे कमाकर महल बनाके सोने से भर दूंगा।
jeevanrana3057

Jeevan Rana

Bronze Star
New Creator

#गुजरती रही जिंदगी धीरे धीरे, वो बैठा रहा यमुना तीरे। कभी यमुना को निहारे, तो कभी डूबते हुए को निकले। कुछ नहीं था उसके पास खाने को थे सिर्फ खीरे, गुजरती रही जिंदगी धीरे धीरे। सोचा बहुत समय है जिंदगी में सब कुछ कर लूंगा, पैसे कमाकर महल बनाके सोने से भर दूंगा। #कविता

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