#गुजरती रही जिंदगी धीरे धीरे,
वो बैठा रहा यमुना तीरे।
कभी यमुना को निहारे,
तो कभी डूबते हुए को निकले।
कुछ नहीं था उसके पास खाने को थे सिर्फ खीरे,
गुजरती रही जिंदगी धीरे धीरे।
सोचा बहुत समय है जिंदगी में सब कुछ कर लूंगा,
पैसे कमाकर महल बनाके सोने से भर दूंगा। #कविता