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2122   1212    22  अधर चुप मगर बोलती आंँखें।  भेद

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अधर चुप मगर बोलती आंँखें। 
भेद कुछ मगर खोलती आंँखें। 

चैन आए भला हमें कैसे- 
वक्त-बे-वक्त तोलती आंँखें ।

चाँद उतरा बड़ा सलीके से - 
चांँदनी खुद पसारती आंँखें। 

जल उठी ज्यों कहीं शमां दिल में - 
देख ली जब निहारती आंँखें। 

रात ढलने लगी फिजाओं में - 
चांँद पहलू उतारती आंँखें । 

चाहतें है लिए समंदर भी - 
आप डूबा उबारती आंँखें। 

डूबते हम रहे ‘उषा’ यूँ ही - 
ख्वाब कितने संँवारती आँखें ।

©Dr Usha Kiran
  #आंँखें...