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ओ सखी रे.. कैप्शन में पढ़िये.. (शर्म को भी एक गहना

ओ सखी रे..

कैप्शन में पढ़िये.. (शर्म को भी एक गहना माना गया है।
गाँव की पृष्ठभूमि से और हमारे बुजुर्ग पीढ़ी के ज़माने से, जहां शादी के बाद  पत्नी इतनी जल्दी अपने पिया से बात नही कर पाती।
एक वही दृश्य प्रस्तुत है यहाँ..)
.
ओ सखी रे..
कैसे कहूँ पिया से अपने,
कुछ कहूँ या बस चुप ही रहूँ..
शर्म का घूँघट कैसे उठाऊ,
ओ सखी रे..

कैप्शन में पढ़िये.. (शर्म को भी एक गहना माना गया है।
गाँव की पृष्ठभूमि से और हमारे बुजुर्ग पीढ़ी के ज़माने से, जहां शादी के बाद  पत्नी इतनी जल्दी अपने पिया से बात नही कर पाती।
एक वही दृश्य प्रस्तुत है यहाँ..)
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ओ सखी रे..
कैसे कहूँ पिया से अपने,
कुछ कहूँ या बस चुप ही रहूँ..
शर्म का घूँघट कैसे उठाऊ,