मेरी नज़रे पहुँचती नहीं तुझ तक, न जाने क्या माज़रा है, बेटी घर लौटी नहीं मेरी, मेरे जीने का वो इकलौता आसरा है। (अनुशीर्षक पढ़ें) बेटी सुकून होती हैं, रौनक होती हैं, बरकत होती हैं घर की... पर ये सोचकर ही आँखें भर आती है मेरी की ऐसे भी कितने ही घर होंगे जहाँ माँ आज भी दहलीज़ पर आँखें गढ़ाये बेटी की राह तकती रहती होगी। उसे अंदर ही अंदर ये मालूम भी होगा की उसकी बेटी अब कभी वापस नहीं लौटने वाली.. उस जैसे तमाम घरों के हालातों की मैं कल्पना भी नहीं कर सकती, कैसा कभी ना ख़त्म होने वाला मातम फ़ैला रहता होगा उस घर में। काश की वक़्त के साथ कुछ तो बदलता, कुछ हालात तो बेहतर होते? मुझे ख़ुशी है की मैं एक बेटी हूँ पर मैं इस समाज का हिस्सा कह