या तेरे रूख़सार हैं क्या है ये बता जुल्फें ये खोल दी तू ने कि है छाई ये घटा आंखें ये तेरी हैं या प्याले है मय संभाले हुए खिल उठे होंठ कि मेरी दुनिया मे उजाले हुऐ चांद निकला है या आया है कहीं बाम पे तू कितना रखता है असर सुबह पे तू शाम पे तू महकी महकी सी फ़जा आज लगे है, शायद बिखर गया है हवाओं में मेरे नाम पे तू Imtiyaz Khan ©imtiyaz khan #महकी महकी सी फ़ज़ा