एक रवायत सी महसूस होती है अब मुझको ये जिंदगानी कि जिसको मै हर रोज निभाया करता हूँ , साँसे अपनी अदा करता हूँ अपनी ही जिंदगी को मैं ,खुद एक एक साँस की कीमत चुकाया करता हूँ बैठ जाता हूँ आफताब के जाते ही मैं वहां खिड़की के उस कोने पर दिन भर का हिसाब लिए खुद से ही खुद का नाचाहकर भी मै हर रोज कर्जदार बन जाया करता हूँ इस दौर मे हर गुजरती शाम मुझे बहुत सी कीमतें चुकानी पड़ती हैं अपनी ख्वाहिशों अपनी हसरतों की हर रोज खाक उठानी पड़ती हैं तफसील से लिखे वो तमाम खाब जिन्हें लिखता हूँ हर रोज मानो मै जिंदगी की उस किताब पर वो किताब और पर उसपर नविश्ता मेरे खाब कि जिनकी तव्क्कुआत मै खुद से ही करता हूँ उनकी मौजूदगी भी मुझे खुद से ही छुपानी पड़ती है बाबजूद कुछ तो ऐसा है जो मुसलसल मुझे साँस लेने को उकसाया करता है मै जितना भी नाउम्मीद महसूस करूँ जहन मे अपने वो कुछ पल के खातिर ही सही मगर नई उम्मीद जगाया करता है रजामंदी से कहो या ना-रजामंदी के तौर पर मगर बीते कुछ रोज से ये जिंदगानी वो खुशगवार पल नहीं है कि जिसे मै महसूस कर पाऊ, दरअसल एक रवायत है कि जिसे मेरा जमीर हर रोज निभाया करता है ।। #NojotoQuote