बलात्कार सा लगता है मुझे,उस हरपल, राह चलते हुए,कोई नजरों से घूरता है जिसपल| बुरा लगता है बहुत,बड़ी घिन सी महसूस है होती, सवाल रहता है मन में,क्या उनके घर में मां बहन नहीं होती| शारीरिक बलात्कार से कम नहीं होती है ये वारदाते, अकेले भी बैठू कभी,तो दिल रोता है याद कर ये बातें| कोशिशें बहुत है रहती,के उन्हें नजरंदाज किया जाए, पर आखिर कब तक,उन्हें यूं ही खुला छोड़ दिया जाए| अंकुश नहीं लगाया अगर इन्हें उसी वक्त, जिस वक्त वो ऐसी घिनौनी हरकतें है करते| यकीन मानो रोका नहीं अगर उन्हें अभी, तो आगे बलात्कार से भी नहीं रोक सकते| मुझ पर है बीत रही जैसी,वैसे ही औरों पर भी बीत रही होगी, मैं तो रोकूंगी अभी उन्हें,शायद शुरुआत के लिए ही सब रुकी होंगी| क्रांति तो नहीं पर कई तो कोई शुरुआत तो होगी, घूम रहें है जो दरिंदे बेखौफ,उनपे कोई लगाम तो होगी| चरण : चौथा.. अंकुश लगना जरूरी है.. #rzकाव्यशाला #rzकाव्यसंदर्भ #restzone #yqdidi #औरतों_की_स्थति #yqhindiquotes बलात्कार सा लगता है मुझे,उस हरपल, राह चलते हुए,कोई नजरों से घूरता है जिसपल| बुरा लगता है बहुत,बड़ी घिन सी महसूस है होती, सवाल रहता है मन में,क्या उनके घर में मां बहन नहीं होती|