निस्वार्थ प्रेम का प्रतिबिंब मन में बना हुआ हो जहां झलक मात्र से नैनो को सुख प्राप्त हो रहा हो क्या कहे उस प्रेम को जो विचारों के रास्ते हर छड़ दूर रहकर भी नजदीक रह रहा हो ।।। निस्वार्थ प्रेम