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ग़ज़ल:_ विधवा आह!आह! करती रही वो 'ज़िन्दगी' ने न

ग़ज़ल:_ विधवा


आह!आह! करती रही वो 'ज़िन्दगी' ने ना तरस खाया 
चिंतित मन बेचारा उसका, कहा उसने  यूँ सुकून पाया 

छिन गई माथे की बिंदिया,  रंग लाल, सफ़ेद हो आया 
वक़्त का  सितम कहूँ?  इसे मैं या कहूँ कर्मों का साया 

अपशकुनी,डायन और कुल नाशीनी यही नाम है पाया
अश्क मोती बन झलकते रहें, कौन! इन्हें है पोंछ पाया 

आया बसंत बन पतझड़ यूँ,  पिया मुखड़ा देख ना पाया 
बर्बाद हुई, लाचार हुई, सफ़र में ही हमसफ़र खो आया 

विधवा हूँ, कुछ नहीं मैं कर सकती,'ज्ञान' सबने सुनाया 
सिमट गई 'ज़िंदगी' अँधेरों संग, उजाला भी दूर लौटाया  कवि सम्मेलन 3 चतुर्थ ग़ज़ल:_ विधवा 

#kkकविसम्मेलन #kkकविसम्मेलन3 #kk_krishna_prem #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #विधवा #collabwithकोराकाग़ज़ #अल्फाज_ए_कृष्णा
ग़ज़ल:_ विधवा


आह!आह! करती रही वो 'ज़िन्दगी' ने ना तरस खाया 
चिंतित मन बेचारा उसका, कहा उसने  यूँ सुकून पाया 

छिन गई माथे की बिंदिया,  रंग लाल, सफ़ेद हो आया 
वक़्त का  सितम कहूँ?  इसे मैं या कहूँ कर्मों का साया 

अपशकुनी,डायन और कुल नाशीनी यही नाम है पाया
अश्क मोती बन झलकते रहें, कौन! इन्हें है पोंछ पाया 

आया बसंत बन पतझड़ यूँ,  पिया मुखड़ा देख ना पाया 
बर्बाद हुई, लाचार हुई, सफ़र में ही हमसफ़र खो आया 

विधवा हूँ, कुछ नहीं मैं कर सकती,'ज्ञान' सबने सुनाया 
सिमट गई 'ज़िंदगी' अँधेरों संग, उजाला भी दूर लौटाया  कवि सम्मेलन 3 चतुर्थ ग़ज़ल:_ विधवा 

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