जग में मैं ऐसे जिया जाता हूं, जहां सबकुछ स्वीकारा जाता हूं, कभी तानों को तान बनाता हूं कभी श्रृंगार रसपान किए जाता हूं जग में मैं ऐसे जिया जाता हूं, बाल्यकाल का स्वभाव सरल यौवन का उठता तूफान विकल इन सब से आगे बढ़ता जाता हूं यादों का काफिला साथ लिए जाता हूं जग में मैं ऐसे जिया जाता हूं जग में मैं ऐसे जिया जाता हूं 💱रचना का सार..📖 के साथ Collab करें..√..√ 🔻#Rks_रचना_संग्रह_148 💫रचना को शुद्ध एवं स्पष्ट रूप में लिखकर wallpaper में सजाएं, जिससे रचना सुंदर प्रतीत हो..!! 💫सभी रचनाकार अपनी इच्छानुसार असीमित रचनाएँ कर सकते हैं, इसमें कोई प्रतिबंधिता नहीं है..!! 💫रचना का सार..📖 के साथ हमेशा कुछ नया सीखते रहिये व अपने मित्रों को भी सिखाते रहिये..!!