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तेरे कूचे से जब गुज़रता हूँ, पल में जीत

तेरे   कूचे   से   जब    गुज़रता   हूँ,
पल में  जीता  हूँ  पल में मरता  हूँ।

क्या  यही  प्यार  है जो  उसका  मैं,
शाम -ओ- शब  इंतज़ार  करता हूँ।

तेरे   जाने    के   बाद   जाने   जाँ,
रेज़ा - रेज़ा  मैं  फिर  बिखरता  हूँ।

शब तेरे  पहलू  में  गुज़ार  के फिर,
सुब्ह  शबनम  सा मैं  निखरता  हूँ।

क्या   बुझायेगा   ये   समुन्दर  अब,
शम्स   हूँ   इसमें   नित  उतरता  हूँ।

जब   मेरे   साथ   तुम   नहीं   होते,
फिर तो ख़ुद को भी मैं अखरता हूँ।

खौफ   मुझको  न  मौत  का  कोई,
मैं  तो  बस  ज़िन्दगी  से  डरता  हूँ।

सिर्फ  अहसास  होने  भर  से तेरा,
फिर तो  खुशबू  सा  मैं सँवरता हूँ।

वक़्त  हूँ   मुझमें   है   रवानी  'रण',
मैं  भला   कब   कहाँ   ठहरता  हूँ।

अंशुल पाल 'रण'
तेरे   कूचे   से   जब    गुज़रता   हूँ,
पल में  जीता  हूँ  पल में मरता  हूँ।

क्या  यही  प्यार  है जो  उसका  मैं,
शाम -ओ- शब  इंतज़ार  करता हूँ।

तेरे   जाने    के   बाद   जाने   जाँ,
रेज़ा - रेज़ा  मैं  फिर  बिखरता  हूँ।

शब तेरे  पहलू  में  गुज़ार  के फिर,
सुब्ह  शबनम  सा मैं  निखरता  हूँ।

क्या   बुझायेगा   ये   समुन्दर  अब,
शम्स   हूँ   इसमें   नित  उतरता  हूँ।

जब   मेरे   साथ   तुम   नहीं   होते,
फिर तो ख़ुद को भी मैं अखरता हूँ।

खौफ   मुझको  न  मौत  का  कोई,
मैं  तो  बस  ज़िन्दगी  से  डरता  हूँ।

सिर्फ  अहसास  होने  भर  से तेरा,
फिर तो  खुशबू  सा  मैं सँवरता हूँ।

वक़्त  हूँ   मुझमें   है   रवानी  'रण',
मैं  भला   कब   कहाँ   ठहरता  हूँ।

अंशुल पाल 'रण'
anshulpal5760

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