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जब से देखा हैं, मोहन को अपने        मैं तो उसकी, ब

जब से देखा हैं, मोहन को अपने
       मैं तो उसकी, बस उसकी हो चलीं
बरसों की चाहत, आज पूरी हैं
       बरसों की राहत, आज मिलीं हैं कहीं
मुस्कुराता चेहरा, मोहन का मेरे
       उनसे एसी मुलाकात हुई,
उस सूरत को अपने, दिल में संजोए
       उठीं नींद से, आज पलकें भिगोएं
ख्वाब जो टूटा, मेरा दिल भी टूट गया 
       काश आज तो ये, ख्वाब भी सच होता.......

©दिव्यांशी त्रिगुणा "राधिका"
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