माँ -------- अपना मुस्तकबिल बना के छोड़ेंगे, ऐ ख़ुदा तुझे हम आज़माके छोड़ेंगे, अब रोज़ आती है,सपने मे माँ मेरी, घर को जन्नत बनाके छोड़ेंगे, बचपन के क्या वो दिन थे, क्या थी चाँदनी रातें, गौद मे सिर रख के , वो थी लोरियां गाती, परियों की वो कहानी, माँ थी रोज़ सुनाती, जन्नत से आया था इक दिन वो फ़रिश्ता, पूछता है मुझसे वो,क्या तुम्हारी माँ यहाँ रोज़ है आती, याद करते हो इस क़दर उसको, जन्नत मे तुम्हारी माँ को है अब हिचकियां बहुत आती, रो पड़ा मैं पाँव उसके पकड़ कर, और फ़रिश्ते से ये बोला, सपने मे नहीं, माँ मेरी सच मे है आती। कवि कुमार पंकज ©Kumar Pankaj #माँ #jazbaatdilsediltak #stay_home_stay_safe