अब लिख नहीं पाती गीत कोई मैं तनिक प्रयास कर लेती हूँ खुद में हंस-रो कर खुद के खुदा संग हो लेती हूँ । बहती रहती गंग-धार सी भागीरथ प्रेम जटाओं से गिरती रहती अनवरत अनथक गोरसोप्पा प्रवाहों सी, समुद्र तक की पहुँच को स्याही शब्दों में पिरो लेती हूँ । अब लिख नहीं पाती गीत कोई मैं । तनिक प्रयास कर लेती हूँ । चित्-चिंताओं में उत्ताप लहरें विसरे सब अनुबंध हैं कितने भी रहें शून्य पिरोते 1से9 गुणा-जोड़ के प्रबंध हैं ऐसे ही गिर- उठ की छांव-धूप में प्रयासों को जगह देती हूँ । अब लिख नहीं पाती गीत कोई मैं तनिक प्रयास कर लेती हूँ । विद्या-अविद्या की प्रवृत्ति दोनों मेरी रग-रज में अविद्या का मुक्ति पथ विद्या से प्रशस्त अविद्या विद्या के समापन में ऐसी मन की तू-मै में हम संग हो लेती हूँ । अब लिख नहीं पाती गीत कोई मैं तनिक प्रयास कर लेती हूँ ।