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टुकड़ों में सरकता है दिन छाती पर लादे कोलाहल जिस

टुकड़ों में सरकता है दिन 

छाती पर लादे कोलाहल 
जिस्म रेंगता है,
खड़ी दुपहरी सन्नाटा खर्राटे भरता है-
कच्ची नींद रो देती है ..।

--------------------------------

अंधेरा होता है जब,
बिस्तर का रुख़ करती हूँ -
पड़ा मिलता है ढेर चादर पर
भुरभुराये तन का ,
पहले से ही ..

बिस्तर तक पहुँचने में देर हो चुकी होती है !
मैं घट चुकी होती हूँ,
बीते पहर ही ।
पूरी होने से पहले ही रात
खट चुकी होती हूँ ।

ख़ुद तक पहुँचती हूँ जब तलक,
बहुत देर हो चुकी होती है । 



मीनाक्षी

©Meenakshi #सृजनात्मा 
#srijanaatma
टुकड़ों में सरकता है दिन 

छाती पर लादे कोलाहल 
जिस्म रेंगता है,
खड़ी दुपहरी सन्नाटा खर्राटे भरता है-
कच्ची नींद रो देती है ..।

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अंधेरा होता है जब,
बिस्तर का रुख़ करती हूँ -
पड़ा मिलता है ढेर चादर पर
भुरभुराये तन का ,
पहले से ही ..

बिस्तर तक पहुँचने में देर हो चुकी होती है !
मैं घट चुकी होती हूँ,
बीते पहर ही ।
पूरी होने से पहले ही रात
खट चुकी होती हूँ ।

ख़ुद तक पहुँचती हूँ जब तलक,
बहुत देर हो चुकी होती है । 



मीनाक्षी

©Meenakshi #सृजनात्मा 
#srijanaatma
meenakshi5694

Meenakshi

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