तेरे रुख़सार को सहलाती ज़ुल्फों के आज़िज हैं, निगाहें हमारी तुम्हारी निगाहों के यूँ काबिज़ है। हया की दस्तक बार बार लबों को सिल जाती है, तेरी ख़ामोशी में नशा छलकाते तेरे यूँ अारिज़ हैं। गहराई में डूब तेरी नज़रों की पार नहीं उतरना है, होश यूँ अब बस खो देना ही तो हमें वाजिब हैं। रंगीन फिज़ाओं का मंज़र ज़र्रे ज़र्रे में हाज़िर है, जहाँ तेरी पनाहों के मसले ही हमारे हाफिज़ हैं। दिल के मिजाज़ तुम्हारे बदलना तो जायज़ ही है, दिल की धड़कनें भी कहाँ अब हमारे काबिज़ हैं। करीबी का एहसास दिला फासलों की ज़मीं होना, रफ़तार दिल की से कज़ा के आशियाने खारिज हैं। तेरी सुर्ख अदाओं से महकती हमारी यूँ हसरतें हैं, तेरे तसव्वुर में भी हमारी आहें, साँसें जाज़िब हैं। ज़िन्दगी मौत की कुछ खबर नहीं, ख़्वाबगा़ाह में, बेहोशी में भी फिज़ाओं में तेरी खुश्बू ही जानिब है। Tried something different #आज़िज #काबिज़ #आरिज़ #हाफिज़ #खारिज #रुखसार