मेहताब सा मै लिखूं तूझे,तू नूर् सी पिघलती रहे मै खाब सा पढ़ू तुझे, तू खाब सी ढलती रहे।। एक आरज़ू करू तुमसे, के तुमको आरज़ू बना लूं। बेकरार रहूं हरपल मै, तू आफताब सी जलती रहे।। जिस्म की तलब नहीं जो रखूं रकीब से वास्ता।, बेताब सा मिलूं तुझे तू याद सी बनकर रहे।। सबोंरोज मै तुमसे नवाजिशे मोहब्बत करता रहूं,। तू नाम दे मेरी मोब्बत को मै गुमनाम सा बनकर रहूं। एक ऐहसास सा बुनूं तुझे ,तू मोतियों से बिखरती रहे।, मै खाब सा पढ़ूं तुझे, तू खाब सी बनकर रहे।। ©Karan Kumar #दिले एहशाश #Light